हल्की फुल्की सी है ज़िन्दगी
बोझ तो ख्वाहिशों का है।ना जाने ये कैसा जाल
मन की साज़िशों का है।
सोचते थे... ख्वाहिशें ना हों, तो खुद से ऊब जाएंगे।
कहाँ पता था, ख्वाहिशों के समुंदर में खुद ही डूब जाएंगे।
सोचते थे... वो भी क्या दिन होगा, जब अपने बंगले की छत से उगता सूरज देख पाएँगे।
कहाँ पता था इस चाह में हम सूरज देखना ही भूल जाएँगे।
सपने पूरे करने चले थे... सपने देखना ही भूल गए।
ख्वाहिशों के बंधन में कुछ यूँ फंसे, ज़िन्दगी जीना ही भूल गए।
आज आया है होश फिर एक बार... इसे यूँ ही नहीं गंवाएँगे।
ख्वाब अभी भी सजाएँगे मगर, ये छोटी छोटी खुशियाँ नहीं भूल जाएँगे।
ज़िन्दगी के इस तराज़ू में... तौल कर कदम बढ़ाएँगे।
आगे तो बढ़ेंगे ही मगर, ज़रा थम कर इस पल का भी लुत्फ उठाएँगे।
हल्की फुल्की सी है ज़िन्दगी।
हंसी खुशी ही बिताएँगे।।